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Showing posts from June, 2020
यक्ष प्रश्न !! कौन हूं मैं ? तुम ना ये शरीर हो, ना मन, ना बुद्धि , तुम शुद्ध चेतना हो, वो चेतना ही सर्व साक्षी है जीवन का उद्देश्य क्या है ? जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है,  जो जन्म और मरण के बंधन से मुक्त है । उसे जानना ही मोक्ष है । जन्म का कारण क्या है ? अतरिक्त वासनाएं, कामनाएं और कर्मफल, यही जन्म का कारण है । जन्म और मरण के बंधन से मुक्त कौन है ? जिसने स्वयं, उस आत्मा को जान लिया । वह जन्म और मरण के बंधन से मुक्त है । वासना और जन्म का संबंध क्या है ? जैसी वासना वैसा जन्म, यदि वासनाएं पशु जैसी तो पशु योनि में जन्म , यदि वासनाएं मनुष्य जैसी तो मनुष्य योनि में जन्म !! संसार में दुख क्यों है ? लालच, स्वार्थ और भय संसार में दुख के कारण है ईश्वर ने दुख की रचना क्यों की ? ईश्वर ने संसार की रचना की, और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से सुख और दुख की रचना की । क्या ईश्वर है ? कौन है वह ? क्या रूप है उसका ? क्या वह स्त्री है या पुरुष ? हे  यक्ष !! कारण के बिना कार्य नहीं !! यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है तुम हो इसलिए वो भी है उस महान कारण...
बात 1965 की है जब एक तरफ तो भारत और पाकिस्तान  के बीच युद्ध चल रहा था, तो दूसरी तरफ चीन ने सिक्किम की सीमा पर सेना को बढ़ा दिया । उस समय सिक्किम की कमान लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह के हाथ में थी। तब चीन की तरफ से एक अजीबोगरीब हरकत कि गई। चीन ने अपनी सीमा पर भोंपू लगवा दिए। जिससे चीन के सैनिक दिन भर अपना प्रोपेगेंडा चलाते थे । भारतीयों को बताते थे कि किस प्रकार उन्हें 1962 में हराया था । भारतीय सैनिकों के कम वेतन और रहन सहन के बुरे हालातों के बारे बताया जाता था ।साथ ही उन्हें यह भी बताते थे कि देखो हमारे हालत तुमसे कितने अच्छे हैं । यह सब चीन की सेना इसलिए करती थी ताकि भारतीय सैनिकों का मनोबल गिराया जा सके और बिना लड़े ही युद्ध जीता जा सके । इसे कहते हैं मनोवैज्ञानिक युद्ध या साइकॉजिकल वारफेयर । जब सगत सिंह ने यह देखा तो उन्हें लगा कि यह तो वास्तविक युद्ध से भी घातक हो सकता है इसलिए उन्होंने चीन कि इस चाल का तोड़ निकालते हुए आदेश दिए की भारत के द्वारा भी ऐसे ही भोंपू लगाए जाए और चीनियों को जवाब उनकी भाषा में ही दिया जाए । इसका परिणाम यह हुआ कि 1967 में जब वास्तविक लड़ाई नाथू ला में हु...
ऑपरेशन ल्हासा !! लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह 1967 में नाथू ला के दर्रे पर चीन को पछाड़ चुके थे । अब वो एक वॉर हीरो बन चुके थे । उस समय वे डिविजनल कमांडर के पद पर  थे । एक दिन वे सिग्नलस  रेजिमेंट का वार्षिक निरीक्षण करने गए । जब सैनिकों को पता लगा की उन्हें उनका खोया सम्मान पुनः दिलाने वाला जनरल आ रहा है  तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था । सगत सिंह एक लाइन स्टोर का निरीक्षण कर रहे थे तभी उनकी नजर दीवार पर बड़े अक्षरों में लिखे 'ऑपरेशन ल्हासा' पर पड़ी । सगत सिंह को कुछ समझ नहीं आया कि इसका क्या अर्थ है उन्होंने वहां खड़े कमांडिंग ऑफिसर से पूछा कि ये क्या है ? कमांडिंग ऑफिसर के लिए भी ये एक पहेली थी !!  तब उन्होंने वहां खड़े सैनिक की तरफ पूछते हुए इशारा किया । सैनिक ने सगत सिंह को जवाब दिया की साहब जब हम तिब्बत की राजधानी  ल्हासा पर अधिकार करेंगे तब उस ऑपरेशन का नाम 'ऑपरेशन ल्हासा' रखेंगे । सगत सिंह यह सुन कर जोर से हंसे और सैनिक की पीठ थपथपाते हुए कहा कि "मैं मेरे हर सैनिक में यही आत्मविश्वास चाहता हूं।"  कमांडिंग ऑफिसर को कहा कि आपकी यूनिट का  निरीक्ष...