बात 1965 की है जब एक तरफ तो भारत और पाकिस्तान  के बीच युद्ध चल रहा था, तो दूसरी तरफ चीन ने सिक्किम की सीमा पर सेना को बढ़ा दिया । उस समय सिक्किम की कमान लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह के हाथ में थी। तब चीन की तरफ से एक अजीबोगरीब हरकत कि गई। चीन ने अपनी सीमा पर भोंपू लगवा दिए। जिससे चीन के सैनिक दिन भर अपना प्रोपेगेंडा चलाते थे । भारतीयों को बताते थे कि किस प्रकार उन्हें 1962 में हराया था । भारतीय सैनिकों के कम वेतन और रहन सहन के बुरे हालातों के बारे बताया जाता था ।साथ ही उन्हें यह भी बताते थे कि देखो हमारे हालत तुमसे कितने अच्छे हैं । यह सब चीन की सेना इसलिए करती थी ताकि भारतीय सैनिकों का मनोबल गिराया जा सके और बिना लड़े ही युद्ध जीता जा सके । इसे कहते हैं मनोवैज्ञानिक युद्ध या साइकॉजिकल वारफेयर । जब सगत सिंह ने यह देखा तो उन्हें लगा कि यह तो वास्तविक युद्ध से भी घातक हो सकता है इसलिए उन्होंने चीन कि इस चाल का तोड़ निकालते हुए आदेश दिए की भारत के द्वारा भी ऐसे ही भोंपू लगाए जाए और चीनियों को जवाब उनकी भाषा में ही दिया जाए । इसका परिणाम यह हुआ कि 1967 में जब वास्तविक लड़ाई नाथू ला में हुई तब भारतीय सैनिक गजब साहस और उत्साह से लड़े, शुरुवाती नुकसान के बाद भी चीनियों को मार भगाया ।

वर्तमान में चीन को सीमा पर भोंपू लगाने की जरूरत नहीं है क्योंकि मीडिया, सोशल मीडिया में ऐसे कई लोग बैठे हैं जो चीनी तनख्वाह पर काम कर रहे हैं और सामान्य भारतीय बिना सोचे समझे उनका राग अलाप रहा है ।

मनोवैज्ञानिक युद्ध को समझिए !! चीन के भोंपू मत बनिए !! सरकार पर कड़ी कार्यवाही के लिए दबाव बनाईये !! सेना को मजबूत करने के लिए कार्य कीजिए !! राजनीति के लिए कोई और दिन तय कर लीजिए !! पर चीन के भोंपू मत बनिए !!

जहां तक मेरा अनुभव है चीन एक ही भाषा समझता है और वो है शक्ति की,मजबूती की !! 135 करोड़ का देश अगर एक साथ खड़ा हो जाए !! तो ये चीनी ड्रैगन फुस्स होते नजर आएगा !!


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